Translate

Friday, April 24, 2020

उल्का पिंड का रहस्य


उल्का पिंड का रहस्य

पृथ्वी का जन्म करीब  पांच हजार साल पहले हुआ था और अभी करीब चार हजार साल के करीब धरती बची हुई है उसके बाद पृथ्वी सूर्य में समां जाएगी करोड़ों साल पहले एक बड़े उल्का पिंड के गिरने के कारण ही धरती से डायनासोर समाप्त हुए थे। छोटे उल्का पिंडों की बारिश हमेशा पृथ्वी पर होती रहती है लेकिन अधिकाँश धरती से टकराने  से पहले उल्का पिंड जल कर नष्ट हो जाते हैं। हमारी धरती  उल्का पिंड गिरने का एक सबूत 1908  में साइबेरिया के टुंगुस्का में हुआ था , जब एक क्षुद्र ग्रह धरती में टकराने से पहले जलकर नष्ट हो गया था।  इसकी वजह से क़रीब 100 मीटर बड़ा आग का गोला बना था। इसकी चपेट में आकर करीब 8 करोड़ पेड़ नष्ट हो गए थे। इसी तरह करीब आठ लाख साल पहले पृथ्वी से टकराए थे। विशाल उल्कापिंड का मलबा तीन महाद्वीपों एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका तक फैल गया था। वह पृथ्वी के इतिहास का सबसे बड़ा उल्कापिंड माना जाता है। खगोल विज्ञान इतना उन्नत हो चुका है कि किसी बड़े पिंड के धरती से टकराने का सटीक पूर्वानुमान लगा सकते है। 
                        
upload this image
उल्का पिंड 

ऐसा ही एक 1998 औ आर  2 नाम का उल्का पिंड या छुद्रग्रह 29 अप्रैल को सुबह 10 बजे  पृथ्वी से यह उल्का पिंड  31319 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से पृथ्वी के करीब आ रहा है यह उल्का पिंड हिमालय पर्वत से भी बड़ा है। इस उल्का पिंड से हम सभी को डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश नहीं करेगा जिस उलकापिंड  के मुताबिक ऐसे उल्का पिंडों का हर 100 साल में धरती से टकराने की 50,000 संभावनाएं होती हैं। सोशल मीडिया पर ये भी अफवाह फैला है की आज से ठीक 6 दिन बाद 29 अप्रैल को जब पृथ्वी से यह उल्का पिंड 1998 औ आर  2 गुजरेगा तो टकराने से धरती पर समाप्त हो जाएगी  

                   इस बारे में डॉक्टर स्टीवन का कहना है यह उल्का पिंड 52768 सूरज का एक चक्कर लगाने करीब 3.7 वर्ष लेता है और एक दिन की धुरी 4 दिन में पूरी करता है। जब यह पृथ्वी के थोडा नजदीक आता है

NASA का भी कहना है कि इस उल्का पिंड से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह धरती से कई किलोमीटर कि दूरी से गुजरेगा। फिलहाल कोरोना का संकट ज्यादा बड़ा है इसलिए उस पर ध्यान देना चाहिए।



Friday, April 17, 2020

रहस्मयी किताबे


रहस्मयी किताबे

भारत न जाने कितने को समेटे हुए है कुछ का पता प्राचीन किताबो और रहस्यों से चलता है इन रहस्यों का वर्णन हमारे शास्त्रों, पुराणों और ऐतिहासिक किताबों में है । जिसका ज्ञान अद्भुत है अकल्पनीय है। इन किताबों के ज्ञान को पढ़कर ऐसा लगता है कि किसने रचना की होगी  यह किताब  कितनी पुरानी है इन किताबो की रचना किसने और क्यों की होगी?

लाल किताब

लाल किताब पारम्परिक विद्या का ग्रन्थ है। यह विद्या उत्तरांचल और हिमाचल के सुदूर इलाके तक फैली हुई है। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से लेकर अफगानिस्तान तक फैला । अंग्रेज के काल में इस विद्या की बिखेरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन 1939 ईस्वी को लाल किताब के फरमान नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे। प्राचीन काल में आकाश से आकाशवाणी होती थी कि ऐसा करो तो जीवन में खुशहाली होगी, बुरा करोगे तो तुम्हारे लिए सजा तैयार कर दी जाएगी। हमने तुम्हारा सब कुछ अगला पिछला हिसाब कर रखा है। कहते हैं इन आकाशवाणी को लोग याद करके रख लेते थे और पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाते थे। बाद में इन रहस्यमई आकाशवाणी के द्वारा प्राप्त हुए विद्याओं को कुछ लोगों ने लिपिबद्ध कर दिया गया था। माने या ना माने लेकिन इस किताब को अगर पढ़कर आप समझ गए तो निश्चित ही आपका दिमाग पहले जैसा नहीं रहेगा।

                                                           रावण संहिता 

रावण द्वारा रचित रावण संहिता ज्योतिष और आयुवेर्द से जुडी जानकारी मिलती है। यह किताब बहुत ही प्राचीन है और आज के समय में इसे असली होने का कोई सबूत नहीं है। जिस तरह लाल किताब की नकली किताब मिलती है उसी तरह रावण संहिता की भी मिलती है। लेकिन ऐसा लोगो का कहना है की रावण संहिता की एक प्रति देवनागरी लिपि के एक गांव गुरु नालिया में सुरक्षित रखी गयी है। रावण ने जिस ग्रन्थ की रचना की शिव तांडव स्रोत और रावण संहिता प्रमुख है। लंकापति रावण ने सूर्य के सारथी अरुण से यह ज्ञान प्राप्त की थी।

विमान शास्त्र 
विमान शास्त्र एक रहस्मयी किताब है। जिसकी रचना ऋषि भारद्वाज ने की थी। विमान शास्त्र में विमान बनाने की जिस तकनीक का उल्लेख किया है उसका प्रचलन आधुनिक युग में भी हो रहा है। ऋषि भारद्वाज ने यंत्र सर्वस्य नामक बृहद ग्रंथ की रचना की थी। और इस ग्रंथ का कुछ भाग स्वामी ब्रम्हा मुनि ने विमान शास्त्र के नाम से प्रकाशित करवाया था। कहते हैं इस दिव्य ग्रंथ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरण करने वाले विविध धातुओं के निर्माण का विवरण मिलता है।

पारद तंत्र विज्ञान

हिमाचल के निरमण जिले में 250 वर्ष पुरानी पारद विज्ञान नामक पुस्तक मिली है। जो 1052 पृष्ठ की पुस्तक है इसमें कई रहस्य छुपे हुए हैं। इसके बारे में राष्ट्र पांडुलिपि मिशन ही बता सकते हैं इस पुस्तक के ऊपर शोध किया जा रहा है। पारद विज्ञान यानी की केमिस्ट्री की प्राचीन पुस्तक जिसमें शायद आयुर्वेद तंत्र ज्योतिष की वह तमाम जानकारियां उपलब्ध होगी।

विज्ञान भैरव तंत्र

अगर खोजा जाए तो तंत्र शास्त्र पर आपको हजारों पुस्तक मिल जाएगी लेकिन सबसे ज्यादा सिद्ध और प्रभावशाली पुस्तक है विज्ञान भैरव तंत्र। यह पुस्तक किसने लिखी यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है।ऐसे मान्यता है की यह पुस्तक भगवान शिव और माता पार्वती के संवाद से अस्तित्व में आया था। इस पुस्तक में भैरवी तंत्र देवी पार्वती के द्वारा प्रश्न पूछे जाते हैं और भगवान शंकर उसका उत्तर देते हैं। जिनमें कई रहस्य गुप्त विद्याओं के संबंध में कहा जाता है कि जिसे पढ़कर आपको बहुत हैरानी होगी।

सामुद्रिक शास्त्र

 सामुद्रिक शास्त्र मुख मंडल तथा संपूर्ण शरीर के अध्ययन की विद्या है यह विद्या का अनुसरण वैदिक काल से ही किया जा रहा है। यह एक ऐसी रहस्यमई शास्त्र है जो मनुष्य के संपूर्ण चरित्र और भविष्य को खोलकर रख देता है। इस शास्त्र का जन्म 5000 ईसापूर्व भारत में हुआ था। जिनमें ऋषि पराशर, व्यास, भारद्वाज, भृगु, कश्यप, बृहस्पति, कात्यायन आदि महर्षि ने इस विद्या की खोज की थी। यह भी कहा जाता है कि ईसा पूर्व 423 में यूनानी विद्वान  गोरस इस शास्त्र पढ़ाया करते थे। यह शास्त्र महान सिकंदर को भी भेंट की गई थी।

अथर्ववेद

'
अथर्ववेद एक बहुत ही रहस्यमई किताब है जिन में ऐसी विद्याओं का वर्णन  है जिसे सुनकर आपको यकीन तक नहीं होगा।ऐसे मान्यता है कि किसी षड्यंत्रकारी ने यदि कुछ देख कर या फिर किसी अन्य उपाय से आपका अहित किया है तो आप किसी यक्ष का स्मरण कर ध्यान अवस्था में रहते हुए यह आभास पा सकते हैं कि आप के खिलाफ कहां कौनसा कुचक्र हो रहा है। कई लोगों ने रेकी विद्या का नाम सुना है, जिसे हम लोग जापानी विद्या कहते है लेकिन संवर्ग विद्या जो उपनिषद योगेश गाड़ीवान को आती थी। यही गाड़ीवान ही रैक ऋषि थे। रैक ऋषि ने विराट से चढ़ते उर्जा को सीधे-सीधे ग्रहण करने की विद्या अपनाई थी।

                              अथर्ववेद में सम्मोहन विद्या का भी विस्तार है। सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन विद्या में प्राण विद्या या त्रिकाल विद्या नाम से पुकारा जाता था। कुछ लोग इसे मोहिनी और वशीकरण विद्या भी कहते हैं। अंग्रेजी में ऐसे हिप्नोटिज्म कहते हैं। यह सारी विद्या हमारे अथर्ववेद में संग्रहित है। पहले इस विद्या का इस्तेमाल भारतीय साधु-संत सिद्धि और मोक्ष प्राप्ति करने के लिए किया करते थे। लेकिन जब यह विद्या गलत लोगों के हाथ में लग गई तब उन्होंने इसके माध्यम से काला जादू से लोगों को बस में करने का साधन बना दिया। हमारे भारत के शास्त्रों के अनुसरण करके दूसरे देशों ने इन्हें अपने तरीके से लिख कर इन रहस्यमई विद्याओं को अपने देश के नाम से उजागर किया।  हमारे भारत के वेद शास्त्र और पुराणों में सारी लौकिक और पारलौकिक बातें लिखी हुई है, जिनका अनुसरण करके हमारे मन के सारे द्वंद मिट जाएंगे

                                      हमारे भारत की वेद पुराण से महत्वपूर्ण बातों को आपको बताएं ताकि आपको यह महसूस हो कि हमारा भारत सभी तरह से परिपूर्ण था, परिपूर्ण है और आगे भी परिपूर्ण रहेगा।                                                         



                                                            


Friday, April 10, 2020

भारत के अनसुलझे रहस्य

                                   भारत केअनसुलझे रहस्य  


 भारत में कई ऐसे स्थान जिनका आज भी रहस्य बरक़रार है भारत कई ऐसे रहस्य है जो अनसुलझे है।


                                                            असीरगढ़ किला

upload this image

असीरगढ़ किला


मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर 20 किमी दूर असीरगढ़ किला है। ऐसा कहा जा रहा है की अश्‍वत्थामा पिछले 5 
हजार वर्षो से भटक रहे है जिसमे वो रोज पूजा अर्चना करते आते है। महाभारत में द्रोण पुत्र अश्वातमा एक ऐस योद्धा थे। जो अकेले ही सम्पूर्ण युद्ध लड़ने में झमता रखते थे। पांडव के सेना कौरवो की सेना से कमजोर थी। लेकिन फिर वो हर गयी महाभारत युद्ध 18 ऐसे योद्धा थे जो जीवित थे उनमे से एक अश्‍वत्थामा भी थे। अश्‍वत्थामा को सम्पूर्ण महाभारत में कोई नहीं हरा पाया था वो अपराजित और अमर थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अपने पिता की मृत्यु का बदला  लेने निकले उनकी एक भूल से श्री कृष्ण ने उन्हें युगो युगो तक भटकने का श्राप दे दिया।वहा स्थानीय से जुड़े कई कहानिया जुडी है अश्‍वत्थामा को जिसने भी देखा उसकी मानसिक स्तिथि ख़राब हो गयी। अश्‍वत्थामा पूजा से पहले किले के तालाब में नहाते है। बुरहानपुर के अलावा मप्र के ही जबलपुर शहर के गौरी घाट के (नर्मदा नदी) के किनारे अश्‍वत्थामा के भटकने का उल्लेख्य है स्थानीय निवासियों के अनुसार, कभी-कभी अपने सिर के खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल भी मांगते है जिसका प्रमाण आज तक  भी कुछ नहीं मिला है।

                                                    कैलाश पर्वत


upload this image
कैलाश पर्वत

दुनिया का सबसे रहसमयी पर्वत भी कहा जाता है। इससे अप्राकृतिक शक्तियो का केंद्र भी कहते है। यह पर्वत पिराडनुमा आकर का है। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती का केंद्र है। यह एक ऐसा केंद्र है जिसे एक्सिस मुड़ी भी कहा जाता है एक्सिस मुड़ी का मतलब है - दुनिया की नाभि या आकाशिए ध्रुव या भौगोलीघ ध्रुव का केंद्र है । यह आकाश और पृथ्वी का संबंध बिंदु है जो दसो दिशाओ  में मिल जाता जाता है कैलाश पर्वत की संरचना चार दिक् बिंदु के सामान है और वह एकांत स्थान पर स्थित है जहा कोई पर्वत नहीं है कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद है, पर 11वी सदी बौद्ध योगी मिलारेपा इसकी चढ़ायी की थी 
upload this image
मानसरोवर झील 

कैलाश पर्वत पर चार महँ नदियों से घिरा हुआ है- सिंध, ब्रह्पुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा है और दो सरोवर भी है-  एक मानसरोवर झील जो दुनिया का सबसे शुद्ध पानी के झीलों में से एक है जो सूर्य के आकर का है और दूसरा राक्षस झील जो  दुनिया के खारे पानी के झीलों में से एक है ये चंद्र के आकार का है ये दोनों झीले सूर्य और चंद्र को प्रदर्शित करती है जिसका सम्बन्ध सकारात्मक और नकारात्मक से ऊर्जा है जब इससे दक्षिण से देखते है  तो यह स्वास्तिक देखा जाता है तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं। यह पर्वत मानव निर्मित एक विशालकाय पिरामिड है, जो एक सौ छोटे पिरामिडों का केंद्र है। रामायण में भी इसके पिरामिडनुमा होने का उल्लेख मिलता है।
                          यति यानी हिम मानव को देखे जाने की चर्चाएं होती रहती हैं। इनका वास हिमालय में होता है। लोगों का कहना है कि हिमालय पर यति के साथ भूत और योगियों को देखा गया है, जो लोगों को मारकर खा जाते हैं। 

                                                                    राजगीर 

 सोन का भंडार 
 भारत के राज्य बिहार का एक छोटा सा शहर राजगीर है जो की नालंदा जिले में स्तिथ है मौर्य शासक बिम्बिसार का राज्य था यह प्राचीन मगध की राजधानी थी 


upload this image
                    भगवान बुद्ध  समारक

                      यही भगवान बुद्ध ने राजा बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिए थे यह शहर भगवान बुद्ध के स्मारकों  के लिए विशेष रूप से जाना जाता है इसी राजगीर में सोन का भंडार गुफा है जिसमे बेसकीमती खजाना है जिसे आज तक कोई नहीं खोज पाया है यह खजाना मौर्या सम्राट बिम्बिसार का बताया गया लेकिन कुछ लोग इसे मगध सम्राट जरासंत का बताते है 

                                                                    अलेया भूत लाइट


upload this image
अलेया भूत लाइट

पश्चिमी बंगाल में एक जगह है जो अलेया भूत लाइट के नाम से जाना जाता है  यहाँ पर एक रहस्मयी रोशनी देखी जाने की जानकारी मिली थी स्थानीय लोगो के मुताबिक यह उन लोगो की आत्मा है जो मछली पकड़ते  वक़्ते मर गए थे लोग इन्हे भूतो की रौशनी भी कहते है ऐसा कहा जाता है कि जिन मछुआरों को उनकी  रौशनी दिखती है वे या तो रास्ता भटक जाते है या ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहते है। इन दलदली क्षेत्रों से मछुआरों कि लाशे भी मिली है यहाँ का प्रशासन मैंने को तैयार नहीं है कि यहाँ भूतो के चलते यहाँ कुछ ऐसा होता है उनके मुताबिक मछुहारो के साथ ऐसे घटना होती रहती है इसका पता अभी तक नहीं चल पाया है   

                                                        रूप कुंड झील 

upload this image
                                  रूप कुंड झील 

यह नदी हिमालय के पर्वतो में पायी गयी है इस तट पर मानव के कंकाल पाए गए है।  पिछले कई वर्षो में भारतऔर यूरोपीय के वैज्ञानिकों ने  कई प्रयास किये जो नाकाम रहे है। भारत के उत्तरी क्षेत्र में खुदाई के समय भारतीय प्रभाग को 22 फुट लम्बा मानव कंकाल मिला है।  जो उतर एम्प्टी क्षेत्र से जाना जाता है जो भारतीय सेना के अधीन है यह वह इलाका है। जहा से सरस्वती नदी बहती थी। 8सितम्बर 2007 में प्रकाशित हुई थी 
                     
upload this image
रूप कुंड झील में मानव कंकाल 

इसका अभी तक कोई बयान सामने नहीं आया है । बताया जाता है की महभारत के भीम पुत्र घटोत्कच के कढ़ काठी से मिलता जुलता है।  हालांकि इसकी चलता अमेरिका में पाए जाने वाले बिगफुट से भी की जाती है।जिसकी औसत हाइट 8 फुट है  इसकी हिमालये में पाए जाने वाले यती से भी की जाती है जो बिगफुट के सामान  ही है माना जाता है यह विशालकाय मानव 5 करोड़ वर्षे पूर्व से 1 करोड़ 20 लाख धरती पर रहा करते थे। जिनका औसत वजन 550 किलो हुआ करता था। यह कंकाल को देखकर पता चलता है कि भारत में ऐसे भी विशालकाय मानव रहा करते थे।  भारत सरकार  द्वारा यह गुप्ता रखा गया है इतने बड़े मनुस्य का प्रमाण अभी तक नहीं लग पाया है यह एक रहसये ही है।  

                                                                   जतिंगा गांव 


upload this image
जतिंगा गांव 
आसाम के कछार में  स्तिथ एक गांव है जिसमे पंछी आकर आत्महत्या करते है  जो सुर्खियों में बना हुआ है मानसून के रात जतिंगा के आसमान में झुण्ड के झुण्ड पंछी आते है और काल के गाल में समां जाते है मतलब आत्महत्या कर लेते  है चिड़ियों के इसतरह सामूहिक आत्महत्या के पीछे क्या कारण है ये आज तक पता नहीं लगा पाया गया है  इस रहस्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है ऐसे क्यों होता है लेकिन इसके बारे में जानना जरूरी है 

                                                           भारत की गुफाये


                  upload this image
          अजंता- एलोरा की गुफाएं
upload this image
बाघ की गुफाएं



                      upload this image
                 एलीफेंटा की गुफाएं 
upload this image
भीम बेटका की गुफाएं
भारत की गुफाये भारत में बहुत सारी प्राचीन गुफाएं हैं, जैसे बाघ की गुफाएं, अजंता- एलोरा की गुफाएं, एलीफेंटा की गुफाएं और भीम बेटका की गुफाएं। ये सभी गुफाएं किसने और कब बनाईं? इसका रहस्य अभी सुलझा नहीं है। अखंड भारत की बात करें तो अफगानिस्तान के बामियान की गुफाओं को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैलचित्र बने हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को कुछ इतिहासकार 35 हजार वर्ष पुराना मानते हैं, तो कुछ 12,000 साल पुरानी।
                                   मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित पुरापाषाणिक भीमबेटका की गुफाएं भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई हैं। भीमबेटका मध्यभारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। पूर्व पाषाणकाल से मध्य पाषाणकाल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।

                                                                   तिब्बत का यमद्वार 

upload this image
 तिब्बत का यमद्वार 
प्राचीन काल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे। यह भारत अखंड का ही हिस्सा हुआ करता था। तिब्बत को चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है।  यम का द्वार पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है। हिंदू मान्यता अनुसार, इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कैलाश पर्वत की परिक्रमा यात्रा के शुरुआती प्वाइंट पर है। तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं, जिसका मतलब होता है दो पैर वाले स्तूप।

                                             ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता। ऐसी कई घटनाएं हो भी चुकी हैं, लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। साथ ही यह मंदिरनुमा द्वार किसने और कब बनाया, इसका कोई प्रमाण नहीं है।

Sunday, April 5, 2020

भारत के रहस्मयी मंदिर

  भारत  के 7 रहस्मयी मंदिर
भारत में प्राचीन मंदिरो में कई मंदिर बहुत ही रहसमयी और चमत्कारी है, जिन्हे आज भी बहुत कम लोग ही जानते है । भारत एक आस्था का देश है। यहाँ हिन्दू धर्म में मंदिर और पूजन का बहुत ज्यादा महत्त्व है । भारत में कुछ मंदिर मनोकामना के लिए विख्यात है। ऐसे प्राचीन मंदिर की कई रहसमयी बातें है।


1. काल भैरो मंदिर 
 भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में काल भैरव का मंदिर है। जो वहा से 8 किमी.दूर है। काल भैरो के  मंदिर में  केवल शराब चढाई जाती है।काल भैरो की मूर्ति के पास शराब ले जाने पर शराब से भरा प्याला खाली हो जाता है। काल भैरो मंदिर के बाहर देसी शराब  कई सारी दुकाने है।

UOLOAD THIS IMAGE
काल भैरो मंदिर
पुराणों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा ने शिव का अपमान कर दिया था, इस बात से शिव बहुत ही ज्यादा क्रोदित  हुए थे  और तब उनके नेत्रों से काल भैरो प्रकट हुए थे। काल भैरो ने भगवन बर्ह्मा का पांचवा सर काट दिया था। जिस कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। काल भैरव ने पाप को दूर करने के लिए कई जगह गए लेकिन उन्हें पाप से कही मुक्ति नहीं मिली। काल भैरो ने भगवान शिव की आराधना की जिससे शिव ने काल भैरो को बताया की क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर शमशान के पास तपस्या करने से उन्हें मुक्ति मिलेगी तभी से वहा एक काल भैरो की पूजा की जाती है, कालांतर में वहा एक बड़ा मंदिर बन गया है। परमार वंश के राजा ने  इस मंदिर का निर्माण  करवाया  था ।  

2. मेहंदीपुर  बालाजी 
भारत में राजस्थान के मेहदीपुर बालाजी का मंदिर है। श्री हनुमान का बहुत ही जागृत रूप है। यहाँ के लोगो का विश्वाश है। मेंहदीपुर बालाजी  मंदिर में हनुमान दैवी शक्ति से बुरी आत्मा से छुटकारा मिलता है, ऐसा वहा के लोगो का विश्वाश  है। इस मंदिर  को संकटवाला मंदिर भी कहा जाता है। 
                
IMAGE UPLOAD
 मेहंदीपुर  बालाजी
भूत प्रेत से पीड़ित लोग यहाँ अपनी समस्या दूर करने लिए  आते है, यहाँ आरती के तुरत बाद गर्भ गृह में जाते है और तब वहा के पंडित कुछ  उपाए करते है जिससे लोग ठीक हो जाते है।यहाँ के लोगो की मान्यता है ऐसा होता है वहा इसलिए ये मंदिर बहुत ज्यादा प्रख्यात है।  


                                                     3. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर 
यह मंदिर भारत में  गुजरात शहर के भरुच जिला के जम्बसुर तहसील में  कावी-कम्बोई के समुन्द्र तट पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते है। मंदिर कि ऐसे विशेषता है कि समुन्दर दिन में दो बार स्तंभेश्वर महादेव मंदिर  का अभिषेक करता है। यह मंदिर पूरा समुन्द्र के अंदर चला जाता है। 
UPLOADE THIS IMAGE
 स्तंभेश्वर महादेव मंदिर 
इस  मंदिर का निर्माण शिव के पुत्र कार्तिकेय ने अपने तपोबल से किये थे।  मंदिर का समुन्द्र में गायब हो जाना कोई चमत्कार नहीं है  दिन में हर रोज सुबह और शाम में  कम से कम दो बार जलस्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर पूरा समुन्द्र में चला जाता है।  और फिर कुछ ही पल में समुन्द्र का जलस्तर घट जाता है तो मंदिर नजर आने लगता है  श्रद्धालु इस घटना को समुन्द्र द्वारा शिव अभिषेख समझते है।  श्रद्धालु इस मंदिर को दूर से ही देखते है। 

4.तवानी माता मदिर
 भारत में  हिमांचल प्रदेश के धर्मशाला से 25 किमी. दूर तवानी माता का मंदिर है। यह मंदिर गर्म पानी और झरनो के कुंड के लिए जाना जाता है। तवानी मंदिर के कुंड में स्नान के बाद ही मंदिर में प्रवेश कर सकते है।

UPLOAD THIS IMAGE
तवानी माता मदिर
माता के  कुंड का पानी गर्म कैसे हुआ यह बात आज तक रहस्य ही है। यहाँ के लोगो की ऐसे मान्यता है की यहाँ का पानी शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद है। 

5 करणी माता मंदिर
भारत में यह मंदिर राजस्थान के बीकानेर से कुछ दूरी पर देशनोक नमक स्थान पर है। यह मंदिर मूषक मंदिर के नाम से भी भी जाना जाता है। इस मंदिर के चूहों को काबा कहते है। इस मंदिर में भक्तो से ज्यादा काला चूहा है। 
करणी माता मंदिर
इनके बीच अगर  काला चूहा के जगह सफ़ेद चूहा दिख जाये तो भक्तो की सारी मुरादे पूरी हो जाती है ऐसी मान्यता है। चूहों को भक्त दूध, लड्डू आदि देते है आश्चर्य की बात तो यह है कि मंदिर के बहार जाने पर एक भी चूहा नहीं दिखाए देता है। इस मंदिर में एक भी बिल्ली दिखायी नहीं देती है। यहाँ के लोग कहते है कि जब प्लेग नामक बीमारी फैला था तो यह मंदिर ही नहीं पूरा इलाका में लोगो कुछ नहीं हुआ था। यह मंदिर राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है ।

6. कामाख्या मंदिर
भारत में यह मंदिर असम के गुहाटी रेलवे स्टेशन से  10  किमी दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्तिथ है यह मंदिर कामाख्या देवी को समर्पित है कामाख्या मंदिर के 52  शक्तिपीठो में से एक है यहाँ सती का योनि भाग गिरा था इसलिए उसी जगह पर कामाख्या मंदिर बना। 
             कामाख्या मंदिर
इस मंदिर में प्रतिवर्ष अंबुबाची मेला लगता है अंबुबाची मेले में तांत्रिक और अघोरी आते है इस समाये माँ कामाख्या को रजस्वला होती है इनकी अवधि तीन दिनों कि होती है । तीन दिनों में योनिकुंड से जल प्रवाह जगह रक्त प्रवाह होता है इसलिए मेले को कामरूप कुंड भी कहा जाता है । 

7.ज्वाला देवी मंदिर
भारत के हिमांचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के कालीघार पहाड़ी के बीच ज्वाला देवी का मंदिर है। शास्त्रों के अनुसार यहाँ सटी की जिह्वा यहाँ गिरी थी।शक्तिपीठ की आराधना करने से  माँ जल्दी  प्रसन्न  हो जाती है। 

UPLOAD THIS IMAGE
.ज्वाला देवी मंदिर
ज्वाला देवी के मंदिर में सदियों से बिना तेल  एवं बत्ती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वाला जलती है। नौ  ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला चाँदी के जाला के बीच में स्तिथ है उस  ज्वाला को महाकाली  ज्वाला कहते है और अन्य आठ ज्वाला के रूप में माँ अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज,  विन्ध्यवासिनी,महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, एवं अजी देवी है । ऐसी मान्यता है मुग़ल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी का अपमान किया था। प्राकृतिक ज्वाला को बुझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। अकबर को जब माता की शक्ति का आभास हुआ तब अकबर ने छमा मांगी और उसने मंदिर पर सोने के छत्तर लगवा दिए।