उल्का पिंड का रहस्य
पृथ्वी का जन्म करीब पांच हजार साल पहले हुआ था और अभी करीब चार हजार साल के करीब धरती बची हुई है उसके बाद पृथ्वी सूर्य में समां जाएगी करोड़ों साल पहले एक बड़े उल्का पिंड के गिरने के कारण ही धरती से डायनासोर समाप्त हुए थे। छोटे उल्का पिंडों की बारिश हमेशा पृथ्वी पर होती रहती है लेकिन अधिकाँश धरती से टकराने से पहले उल्का पिंड जल कर नष्ट हो जाते हैं। हमारी धरती उल्का पिंड गिरने का एक सबूत 1908 में साइबेरिया के टुंगुस्का में हुआ था , जब एक क्षुद्र ग्रह धरती में टकराने से पहले जलकर नष्ट हो गया था। इसकी वजह से क़रीब 100 मीटर बड़ा आग का गोला बना था। इसकी चपेट में आकर करीब 8 करोड़ पेड़ नष्ट हो गए थे। इसी तरह करीब आठ लाख साल पहले पृथ्वी से टकराए थे। विशाल उल्कापिंड का मलबा तीन महाद्वीपों एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका तक फैल गया था। वह पृथ्वी के इतिहास का सबसे बड़ा उल्कापिंड माना जाता है। खगोल विज्ञान इतना उन्नत हो चुका है कि किसी बड़े पिंड के धरती से टकराने का सटीक पूर्वानुमान लगा सकते है।उल्का पिंड |
ऐसा ही एक 1998 औ आर 2 नाम का उल्का पिंड या छुद्रग्रह 29 अप्रैल को सुबह 10 बजे पृथ्वी से यह उल्का पिंड 31319 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से पृथ्वी के करीब आ रहा है यह उल्का पिंड हिमालय पर्वत से भी बड़ा है। इस उल्का पिंड से हम सभी को डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश नहीं करेगा जिस उलकापिंड के मुताबिक ऐसे उल्का पिंडों का हर 100 साल में धरती से टकराने की 50,000 संभावनाएं होती हैं। सोशल मीडिया पर ये भी अफवाह फैला है की आज से ठीक 6 दिन बाद 29 अप्रैल को जब पृथ्वी से यह उल्का पिंड 1998 औ आर 2 गुजरेगा तो टकराने से धरती पर समाप्त हो जाएगी
इस बारे में डॉक्टर स्टीवन का कहना है यह उल्का पिंड 52768 सूरज का एक चक्कर लगाने करीब 3.7 वर्ष लेता है और एक दिन की धुरी 4 दिन में पूरी करता है। जब यह पृथ्वी के थोडा नजदीक आता है